Tuesday, September 24, 2013

वो भी क्या दिन थे...

माँ की गोद और पापा के कँधे...
ना पैसे की सोच ना जीवन के फँदै..

ना कल की चिँता ना भविष्य के सपने...
अब कल की है फिकर और अधुरे हैँ सपने...
मुड़ कर देखा तो बहुत दुर हैँ अपने..

मँजिलो को ढ़ुढ़ते कहा खो गये हम...
आखिर,इतने बड़े क्यु हो गये हम...